बंगाली बोले, तो बांग्लादेशी? सुप्रीम कोर्ट बोला- पहले साबित तो करो!

Ajay Gupta
Ajay Gupta

देश के सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार से सफाई मांगी कि क्या सिर्फ बंगाली भाषा बोलने पर किसी को विदेशी मानकर हिरासत में लिया जा सकता है?

किस बात पर उठी याचिका?

यह मामला उस समय तूल पकड़ गया जब कुछ प्रवासी मुस्लिम मज़दूरों को, जो पश्चिम बंगाल से हैं, बांग्लादेशी नागरिक होने के शक में गुजरात में हिरासत में ले लिया गया। याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में आरोप लगाया कि नागरिकता की कानूनी पुष्टि किए बिना ही उन्हें डिटेन कर दिया गया।

वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने सुनाली बीबी नाम की महिला का ज़िक्र करते हुए कहा:

“सिर्फ इसलिए कि वो बंगाली बोलती हैं, उन्हें जबरन बांग्लादेशी मानकर देश से बाहर कर दिया गया, जबकि कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई।”

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा:

“क्या किसी व्यक्ति को केवल उसकी भाषा या शक के आधार पर विदेशी मानकर हिरासत में लिया जा सकता है?”

इसके साथ ही कोर्ट ने गुजरात सरकार को भी पक्षकार बनाया और एक हफ्ते में जवाब दाखिल करने का आदेश दिया।

ममता बनर्जी ने कहा- मज़दूरों को बड़ी राहत

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए एक्स (Twitter) पर लिखा:

“हमारी न्यायपालिका बंगाल के मज़दूरों की गरिमा और संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करेगी। हमें उस पर पूरा भरोसा है।”

इस मामले के मायने क्या हैं?

  • यह मामला सिर्फ सुनाली बीबी का नहीं है, सैकड़ों प्रवासी मज़दूरों के लिए मिसाल बन सकता है।

  • अगर कोई केवल बंगाली बोलता है, तो क्या उसे विदेशी मान लेना मानवाधिकार उल्लंघन नहीं है?

  • सुप्रीम कोर्ट का दखल इस बहस को एक क़ानूनी दिशा दे सकता है।

नागरिकता कोई ‘अनुमान’ नहीं होती

कोर्ट की इस सख़्ती ने एक बार फिर साबित किया है कि नागरिकता का फैसला भाषा या शक से नहीं, बल्कि ठोस कानूनी प्रक्रियाओं से होना चाहिए। और यह भी कि हर प्रवासी मज़दूर विदेशी नहीं होता

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